Skip to main content

Posts

Showing posts from June, 2020

गजल

क्या करूँ क्या न करुँ उठा ह्रदय में शोर तब जा करके बांध दी तेरे दर पर डोर।  इक तेरा ही आसरा तुझ पर है विश्वास तू ही भीतर तू ही बाहर तू ही है चहुँओर।  मनुज मनुज से डर रहा फैला ऐसा त्रास करो कृपा हे नाथ तुम मिटे निशा घनघोर।  सत्य भी तुम शिव भी तुम तुम ही मेरे राम मत पिता बंधु तुम ही तुम ही माखनचोर।  हे अविनाशी घट घट वासी हम है तेरे दास करबद्ध कर रहे हम प्रार्थना देखो मेरी ओर। 

अनुकूल वातावरण

कंटीले नुकीले कांटेदार केक्टस ही केक्टस है चहुँओर।  खरपतवार ने कर लिया है कब्जा पूरे बगीचे पर।  लहूलुहान तितलियां लाचार,बेबस  ढूंढ रही है सुरक्षित आश्रय।  आओ ! हम सब मिलकर उखाड़ फेके इस अनचाही खरपतवार को, और बनाये एक ऐसा गुलशन जहाँ सभी के लिए हो समुचित स्थान, जहाँ फूल मुस्कुरा सके परिंदे चहचहा सके।  और तितलियां  बचा सके खुद को नुकीले कांटो से।  डॉ दिलीप बच्चानी।