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Showing posts from November, 2020
न सदा ही दिन है रहता न सदा ही रात रहती है मेघो के बरसते ही नदी ये फिर से बहती है

गजल

जो सूरज की मानिंद जलना सीख जाएगा वो हर अंधेरे से निकलना सीख जाएगा।  न कोई हाथ पकड़ो न कोई सहारा दो उसे वो खुद गिरकर संभलना सीख जाएगा।  अभी मासूम है मासूमियत जिंदा रहने दो बड़ा होगा फितरत बदलना सीख जाएगा।  दुनियावी दस्तूर लगते पैरो में जकड़न से तुम सीखे वो भी चलना सीख जाएगा।  यहाँ पर हर शख्स अलग किरदार रखता है वो भी देखना सांचे में ढलना सीख जाएगा।              

गजल

मेरे भीतर कुछ तो जल रहा है कही कोई लावा है जो पिघल रहा है कही सपनो की अर्थियां जल चुकी लेकिन इस राख में कुछ सुलग रहा है कही फिर पीछे देखकर मायूस होना चाहता हूँ कुछ तो है जो आज बदल रहा है कही  आँख मजबूर है रो भी नही पाती है जाने क्या क्या दिल में चल रहा है कही  चलो फिर वीरान बियाबान को लौट चले वीरान शहर भी जंगल में ढल रहा है कही                          दिलीप बच्चानी                          पाली मारवाड़