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Showing posts from March, 2021

शेर

वो लाख हमे मिटाने के मंसूबे पाले हम उसके भी जीने की दुआ करते हैं। 

मासूम बचपन(लघुकथा)

*मासूम बचपन*  हमाम-दस्ते में कूटी जाती हुई अदरक और इलायची की सुगंध...उबलते दूध की महक...जलती हुई गैस भट्टी की आंच ... मुड्डौ पर जमे लोगों के बीच अखबार की सुर्खियों पर चलती नुक्कड़ बहस... चाय थड़ी के काउंटर के निचले खण्डों में भरे हुए डिस्पोजल कपों के बंडल, वहीं पास में रखे हुए कुछ कुल्हड़, जो अब सिर्फ विशेष फरमाइश पर काम आते थे, दो चार चीनी मिट्टी के कप-प्लेट के सेट,  कुछ कांच के गिलास जिनका इस्तेमाल हुए जमाना गुजर गया था, मिल कर मानो कल आज कल को एक साथ ले आए थे।  उपेक्षा के दौर से गुजर रहे कप-प्लेट सेट ने डिस्पोजल कपों के बंडलों को हिकारत से देखते हुए कहा,"क्या जमाना आ गया है, चाय पॉलिथीन में पैक होती है, डिस्पोजल कप में पी जाती है और फेंक दिए जाते है सड़को-पटरियों पर। नुक्कड़,चौराहे, गांव गली जहाँ देखो डिस्पोजल का कचरा ही कचरा।"   कुल्हड़ मुस्कुरा कर बोला "रफ्तार का जमाना है, सब काम फटाफट तेजी से निपटाया जाता है।  एक हमारा दौर था, रात भर कुल्हड़ों को पानी में भिगो कर रखा जाता था। फिर धोकर उसमें चाय परोसी जाती थी और लोग बड़े चाव से सुकून के साथ चाय की चुस्कियां लेते थे...
बात करनी थी तो मेरे किरदार की करते शक्लोसूरत के तबसरे से फायदा क्या है। 

कविता सत्य।

मुझे खोजो मुझे जानो महसूस करो मेरी ताकत मुझे देखो या न देखो मैं तब से हूँ जब से सृष्टि मन मे रखो विचार में रखो परंतु?? बोलो मत यदि सत्य बोला मारे जाओगे।