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Showing posts from July, 2021
मानव में ही खो गई मानवता की गंध इसीलिए टूट रहे ये सारे तटबंबद

आत्म शांति। (लघुकथा)

अरे! भाई तुम इतने उदास,परेशान विचलित से क्यो बैठे हो? तुम तो बड़े भाग्यशाली हो जो तुम्हारे अच्छे कर्मों के कारण तुम्हे स्वर्ग में स्थान मिला है और तुम हो कि यहाँ के किसी आंनद का लाभ ही नही लेते।  यहाँ स्वर्ग में शोक,संताप, रोग के लिए कोई स्थान नही है हर ओर बस आंनद ही आनंद है।  हे!देवदूत आपका कथन सर्वथा सत्य है। परंतु क्या करूँ मुझे मेरे बच्चों मेरी पत्नी और परिवार की चिंता सताती रहती है।मेरे बिना वो कैसे रहेंगे? यही सोच सोच कर मन बेचैन हो जाता हैं।  तुम्हारी समस्या का एक समाधान है मेरे पास।  मैं तुम्हें तम्हारे घर का दृश्य यही पर दिखा देता हूँ। वो देखो तुम्हारे घर पर आज बारहवे की पूजा चल रही हैं पंडित जी आत्म शांति का हवन कर रहे है।  हवन कक्ष में पूरा परिवार रिश्तेदार सभी मौजूद थे। एक कोने में सफेद कपड़ो में सारिका अपनी किसी सहेली के साथ बैठी थी।  सारिका क्या सोचा है तूने अब आगे क्या करना है।  अरे ये सब कामकाज निपटे तो कुछ सोचू, दिन भर रोना धोना। परेशान हो गई हूँ।  वैसे इनके लेपटॉप औऱ डायरी से इतना तो पता चल ही गया है कि इंश्योरेंस की रकम अच्छी खासी...