साहित्य सभा की वार्षिक बैठक में साहित्यिक चोरी पर जोर शोर से चर्चा चल रही थी। आजकल तो कुछ पता ही नही चलता साहब!कौन सी रचना असली है और कौन सी कॉपी पेस्ट। अब तो लाइक औऱ कमेंट करते हुए भी डर लगता हैं। अभी कल ही दूरदर्शन पर एक बहुत अच्छी कविता सुनी और आज किसी ने कुछ बदलाव करके उसे फेसबुक पर पोस्ट कर दिया। तभी एक वरिष्ठ साहित्यकार बोले भाई कॉपीराइट कानून है उसका उपयोग करिए। अजी! छोड़िए साहब बेचारे कवियों और लेखकों के पास जेबखर्च के पैसे तो मुश्किल से होते है। ये क्या कानूनी लड़ाई लड़ेंगे। तभी किसी ने सुझाव दिया एक उपाय है साहित्यिक चोरी को वैध यानी जायज बना दिया जाए। तो फिर देर किस बात की आप लोग नियम सुझाइए।अध्यक्ष महोदय ने कहा। मेरा सुझाव है कि कहानी को हूबहू कॉपी पेस्ट न किया जाए,पात्रो के नाम आदि बदलना जरूरी है। गजल के शेर में भी रद्दोबदल होना चाहिए और कुछ नही तो एक दो शेर अपने जोड़ सकते है। कविता में कुछ शब्दों का बदला जाना जरूरी माना जायेगा। और लघुकथा? अरे! छोड़ो भी लघुकथा, मैं तो इसे साहित्य की विधा ही नही मानता। ...