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Showing posts from September, 2021

साहित्यिक चोरी।

साहित्य सभा की वार्षिक बैठक में साहित्यिक चोरी पर जोर शोर से चर्चा चल रही थी।  आजकल तो कुछ पता ही नही चलता साहब!कौन सी रचना असली है और कौन सी कॉपी पेस्ट।  अब तो लाइक औऱ कमेंट करते हुए भी डर लगता हैं।  अभी कल ही दूरदर्शन पर एक बहुत अच्छी कविता सुनी और आज किसी ने कुछ बदलाव करके उसे फेसबुक पर पोस्ट कर दिया।  तभी एक वरिष्ठ साहित्यकार बोले भाई कॉपीराइट कानून है उसका उपयोग करिए।  अजी! छोड़िए साहब बेचारे कवियों और लेखकों के पास जेबखर्च के पैसे तो मुश्किल से होते है।  ये क्या कानूनी लड़ाई लड़ेंगे।  तभी किसी ने सुझाव दिया एक उपाय है साहित्यिक चोरी को वैध यानी जायज बना दिया जाए।  तो फिर देर किस बात की आप लोग नियम सुझाइए।अध्यक्ष महोदय ने कहा।  मेरा सुझाव है कि कहानी को हूबहू कॉपी पेस्ट न किया जाए,पात्रो के नाम आदि बदलना जरूरी है।  गजल के शेर में भी रद्दोबदल होना चाहिए और कुछ नही तो एक दो शेर अपने जोड़ सकते है।  कविता में कुछ शब्दों का बदला जाना जरूरी माना जायेगा।  और लघुकथा? अरे! छोड़ो भी लघुकथा, मैं तो इसे साहित्य की विधा ही नही मानता।  ...
केवल चारदीवारी तक की बात नही हर एक घर में चुल्हा - चौका रहता है कितनी कीमत होगी एक निवाले की वो ही जाने जो भूखा प्यासा रहता है।  बर्तन होंगे तो ये आवाजे भी आएंगी नए दौर में कौन भला चुप रहता है।  जाने कहा गायब हो गए तुरपाई वाले उधड़ा कपड़ा फटा फटा सा रहता है। 

हिंदी दिवस।

सीधी सादी सरल सयानी है ये कितनी भोली जय जय हिंदुस्तानी बोली।  प्रांत प्रांत में वेश बदलती मानो रंगों की होली जय जय हिंदुस्तानी बोली।  सब भाषाओं को अपनाती भरती अपनी झोली जय जय हिंदुस्तानी बोली।  भिन्न भिन्न शब्दो रंगों से मिल बनती इसकी टोली जय जय हिंदुस्तानी बोली।  उनकी भाषा मस्तक वाली अपनी मन की बोली जय जय हिंदुस्तानी बोली।  भारत माँ के भाल पर सजती ज्यूँ तिलक की रोली जय जय हिंदुस्तानी बोली।