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Showing posts from April, 2022

गजल गर्मी पर

डामर की तपती सड़क सब लोग परेशान घर चलाना आजकल रहा कहा आसान।  दिन भर की मजदूरी साहूकार ने ऐसै दी कर रहा हो जैसे बहुत बड़ा अहसान।  फ़टी चप्पल के कारण पैर में छाला पड़ गया कुल्फी वाले के अटके बदलो में प्राण।  लू की चपेट में आकर कलुआ जब मर गया मंगलू धीरे से बोला किस को मिली दुकान।  सूरज कुछ मध्यम हो जा मेरी ये विनती है क्यो तू लेने पे तुला हम गरीबो की जान। 

पृथ्वी दोहे

धरती ने हमको दिया, है सदा ही प्यार हमने उसको दे दिया, कूड़े का अंबार।  आज हमारा धर्म है, रहे स्वच्छता पास गर हम संभले नही, तो निकट ही नाश। 
लिखना मत सीख चुराना सीख तू दूसरे के इल्म को अपना बनाना सीख तू। 

गजल

दुनियावी चालो तरकीबो को समझना सीख वरना कदम कदम पर तुझे बस मात मिलेगी।  वो दिखाता कुछ है और करता कुछ और ही पहचान संभल जा वरना सिर्फ घात मिलेगी।  दिनभर जब तू बहायेगा पसीना मेहनत का तब कहि जाके तुझे सुकून भरी रात मिलेगी।  वो दौर और था जिसे पीछे छोड़ कर आये हो  अब तुम्हे कहा वो पहले वाली बात मिलेगी।  अगर उगाते रहे हम यूँ ही बारूद की फसले देखना न बंदा मिलेगा न बंदे की जात मिलेगी।  देखना वो आएगी थपथपायेगी सुला देगी हमे आखिर में सभी को वो शरीके हयात मिलेगी।  सँवार सकते नही तो मिटाने पर क्यो तुले हो फिर कहा पे ऐसी दिलकश कायनात मिलेगी।