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गजल

जहाँ मौत के बाद के सपने बेचे जाते है वो किस्से यहाँ मजहब कहलाए जाते है। जीते जी दो घूट भी पीना हराम है जिन्हें उन्हें शराब के दरिया दिखलाए जाते है।  यहाँ तो हुस्न को छुपाते पर्दे की आड़ में वे नादाँ हूरो के हुस्न से बहलाए जाते है।  जो जीते है तमाम उम्र तपन में उमस में वे जहन्नुम की आग से दहलाए जाते है।  हैवन, स्वर्ग,जन्नत कहो या कहो बहिश्त मासूम दिल कुछ यूँही बरगलाए जाते है।  अगर संतुष्ट हो तो घर भी जन्नत ही है भटकने वाले तो यूँ भी भरमाये जाते है।  वो परम् तो मौजूद है तुम में और मुझ में और हम यूँही बेवजह घबराये जाते है। 
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आशीर्वाद। लघुकथा।

पूरे घर मे बहुत चहल पहल थी,पंडित जी पूजन सामग्री को व्यवस्थित करने और पूजा की तैयारी में लगे हुए थे।  विभा और विवेक की प्रथम संतान के नामकरण संस्कार में शामिल सभी मेहमान भी लगभग आ ही चुके थे।  अरे!  बाबा कहा है दिखाई नही दे रहे।  वृद्धाश्रम गए होंगे उनके पुराने दोस्तों से मिलने,चिंता मत करो समय पर आ जाएंगे।  वो देखो,बाबा आ गए।  विधिवत पूजन प्रक्रिया सम्पन्न होने के बाद नवजात शिशु का नाम विभोर रखा गया।  विभोर!अहा,कितना प्यारा नाम है।  विभा ने चहकते हुए कहा।  चलो,सबसे पहले इसे बाबा का आशीर्वाद दिलवा दे।  विभा ने पल्लू सर पर रख विवेक सहित बाबा के चरण स्पर्श किये।  विभोर को बाबा की गोदी में देते हुए कहा।  बाबा इसे लंबी उम्र का आशीर्वाद दीजिये।  बाबा ने बच्चे के माथे को चूमते हुए उसके सर पर हाथ फेरा।  जब तक जिये स्वस्थ और प्रसन्न रहे।  अरे! बाबा अपने लंबी उम्र का आशीर्वाद क्यो नही दिया? क्योकि। "लंबी उम्र हर किसी के लिए अच्छी नहीं होती बेटा। "

गजल

समय व्यर्थ गवाना नही है गया वो वापस आना नही है। जैसे तैसे कट जाएगी ये वैसा जमाना नही है।  उसके घर अब जाऊ कैसे कोई नया बहाना नही है। 

महाकुंभ।

पापा! काश आप भी चले होते प्रयागराज।  एक तरफ श्वेत गंगा की सरिता और दूसरी ओर माँ कालिंदी।  तभी छोटी बिटिया ने उत्साह से कहा, और भीड़ इतनी की जिसका बयां करना कठिन है।  अरे! छोड़ो भी बच्चों, ये आजतक शहर मे होने वाले रावण दहन और अन्य जुलूसों में भी नही जाते।  पर क्यो पापा? क्या अपको त्योहार अच्छे नहीं लगते।  मैं क्या करूँ वहा जाकर।  कुल्हे, कमर ऒर कंधे देखूं।  क्योकि। मै भीड़ का हिस्सा तो हो जाता हूँ पर भीड़ को भी नहीं देख पाता।  "मैं ढिंगना जो हूँ"

अगर और तारीख।

अगर इस तारीख तक ये नही हुआ तो? अगर इस तारीख तक टार्गेट पूरा नहीं हुआ तो? अगर इस तारीख तक ई एम आई नहीं भरी तो? अगर इस तारीख तक स्कूल फीस नहीं भरी तो? अगर इस तारीख तक  व्यापारी को पेमेंट नही भेजी तो? अगर इस तारीख ..... और आखिर हम पहुच जाते है उस तारीख तक, जिसके बाद कोई तारीख नही आती। 

सड़क पर सफर।

कोई चलता है मंथर गति से, तो कोई रौंद डालना चाहता है इसे रफ्तार से।  यहाँ सभी की अलग गति तो है, चलने का अंदाज भी अलग है।  हर मस्तिष्क यहाँ सजग भी है और बेफिक्र भी।  चलते चलते आ जाता है कोई गड्डा,तो निकल जाती है गाली भी।  ट्रैफिक सिग्नल को जल्द पार करने की व्यग्रता,और मंजिल पर पहुँचने का उतावलापन।  कभी भीड़ से भरी होती है, तो कभी सुनसान भी।  देखा जाए तो  बिल्कुल मिलताजुलता है सड़क का सफर जिंदगी के सफर से।