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एकता की डोर।

भारतीय संस्कृति की सबसे बड़ी पहचान उसका परिवार है। यहाँ रिश्ते सिर्फ खून के नहीं, बल्कि भावनाओं और संस्कारों से भी जुड़े होते हैं। संयुक्त परिवार की परंपरा भारतीय समाज की रीढ़ रही है, जहाँ तीन-चार पीढ़ियाँ एक साथ रहती हैं, एक-दूसरे का सहारा बनती हैं और जीवन मूल्यों को आगे बढ़ाती हैं।
ऐसे ही संस्कार शर्मा परिवार में भी कूट कूट कर भरे हुए थे। जहाँ सभी लोग एक दूसरे का सम्मान करते हुए सामंजस्य के साथ सौहार्दपूर्ण वातावरण में साथ साथ रहते थे। 
शर्मा परिवार शहर का एक सम्मानित,जाना पहचाना परिवार था,जिसके मुखिया देवनारायण जी शर्मा रिटायर्ड बैक मैनेजर थे।
दोनो बेटे अजय और विनोद सरकारी कर्मचारी,अजय बैंक में तो विनोद अध्यापक के पद पर कार्यरत थे। 
घर की रीढ़ की हड्डी थी देवनारायण शर्मा जी की पत्नी सरस्वती जिनके इर्द गिर्द इस परिवार की ग्रहस्ती चलती थी। दोनो बहुए सास का घर के काम मे बखूबी हाथ बटाती तथा नित रोज भांति भांति के व्यंजन पकते, पूरा परिवार एक साथ बैठकर उन व्यंजनों का आनंद लेता। 
सुबह की सामुहिक पूजा से शुरू होने वाला दिन हँसी खुशी कैसे बीतता पता ही नही चलता। 
पर वो कहते है न सब दिन एक से नही होते,
एक दिन छोटे बेटे विनोद की बेटी गुनगुन के स्कूल से फोन आया। 
हैलो! जी मैं गुनगुन के स्कूल से उसकी अध्यापिका बोल रही हूँ, गुनगुन खेलते खेलते अचानक बेहोश हो गई है आप जल्दी स्कूल या जाइये। 
देवनारायण जी शर्मा और उनकी पत्नी सरस्वती तुरंत स्कूल पहुचे,तब तक गुनगुन को होश आ गया था। 
अजय और विनोद भी घर आ गए,देवनारायण जी ने गुनगुन के सर पर स्नेहपूर्वक हाथ फेरते हुए पूछा, क्या हो गया था हमारी बहादुर बिटिया रानी को?
पता नही दादा जी खेलते खेलते अचानक चक्कर आ गया। 
बच्ची है ऐसे ही चक्कर आ गया होगा,सरस्वती जी ने कहा। 
नही हमे लापरवाही नही करनी चाहिए, अजय विनोद कल की छुट्टी ले लो और गुनगुन को डॉक्टर के पास ले जाकर अच्छे से चेकअप करवा लो। 
जी बाबूजी हम दोनों कल ही गुनगुन का मेडिकल चेकअप करवा लेंगे। 

सभी जरूरी मेडिकल की जांच होने के बाद पता चला कि गुनगुन को ह्रदय सम्बंधी रोग है जिसका ऑपरेशन के अलावा कोई और विकल्प नहीं है। 
पूरे परिवार ने मिलकर जरूरी रुपये पैसे की व्यवस्था की और गुनगुन का ऑपरेशन सफल रहा। 
परिवार यदि एकजुट हो तो बड़ी से बड़ी समस्या का सामना कर सकता है। 
गुनगुन डिस्चार्ज होकर घर आ गई थी। 
परिवार पर आए महासंकट को टालने के लिए ईश्वर को आभार प्रकट करने हेतु,भगवान सत्यनारायण जी की कथा का आयोजन किया गया। 
सभी मेहमानों के जाने के बाद देवनारायण जी शर्मा ने अपनी गीली आंखों को साफ करते हुए कहा। 
""परिवार एक पेड़ की तरह होता है—शाखाएँ अलग-अलग हो सकती हैं, लेकिन जड़ें हमेशा एक होती हैं।"

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