लेबनान में हिजबुल्लाह आतंकियों पर हुए पेजर अटैक ने मध्यपूर्व एशिया में चल रहे युद्ध का परिदृश्य ही बदल कर रख दिया है।
हिजबुल्लाह के चीफ ने अपने आतंकियों को मोबाईल न उपयोग करने की सलाह दी थी, क्योकि उसे लगता था कि मोबाईल को ट्रेस किया जा सकता है।
इसलिए वो लोग पेज़र का इस्तेमाल करते थे, अब वो ही पेज़र बम की तरफ फट कर उनका ही विनाशक बन गया।
दुनिया मे जितने भी युद्ध हुए है पलड़ा उसी का भारी पड़ता है जो परंपरागत युद्ध शैली से हटकर युद्ध करता है।
उदाहरण के रूप में महाभारत के युद्ध को ही देख ले,महाभारत युद्ध में 14वे दिन कौरव घटोत्कच की युद्ध शैली देखकर हतप्रद रह गए।
अपनी सेना के पैर उखड़ते देख दुर्योधन ने कर्ण से देवेंद्र द्वारा दी हुई अचूक शक्ति घटोत्कच पर चलवा दी और कुरुक्षेत्र का युद्ध अपने अंत की ओर बढ़ चला।
इसी प्रकार लंबे अरसे तक चले द्वितीय विश्वयुद्ध में अमेरिका द्वारा हिरोशिमा और नागासाकी पर हुए परमाणु हमले ने दूसरे सभी देशों को घुटनों पर ला दिया और एक नई वैश्विक व्यवस्था का निर्माण हुआ।
अभी वर्तमान में चल रहे रूस यूक्रेन युद्ध को ही देख लीजिए,रूस के शक्तिशाली टैंक यूक्रेन के ड्रोन के सामने असहाय नजर आए।
एक छोटे से ड्रोन के माध्यम से किस प्रकार शक्तिशाली टैंकों को तबाह किया जा सकता है ये उस युद्ध से सीखा जा सकता है।
जिस प्रकार हिजबुल्लाह पर पेज़र अटैक हो सकता है उसी प्रकार दूसरे देश मे बने इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों से खतरा हो सकता है, ये बात अब पूरी दुनिया को समझनी चाहिए, विशेषकर भारत को जहाँ चीन के सस्ते मोबाईल हर दूसरे हाथ मे उपलब्ध है।
आने वाले समय के युद्ध परंपरा शैली के न होकर तकनीकी शैली के युद्ध होंगे,जो तकनीक में बेहतर होगा वो ही भविष्य के युद्ध जीत पायेगा।
फिर चाहे वो आर्टिफिशिय इंटेलिजेंस का उपयोग हो,या रोबोटिक तकनीक का,ड्रोन टेक्नोलॉजी हो या फिर साइबर हमले।
युद्ध का तरीका और तकनीक अब बदलने वाली है, जो तकनीकी रूप से सामर्थ्यवान होगा वो ही रण भूमि में भी जीतेगा।
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