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Showing posts from December, 2017

लघुकथा

सौरभ बैंक की स्लिप भर ही रहा था की पीछे से किसी ने कहा बाबूजी एक पर्ची हमारी भी भर दो बिना पीछे मुड़े सौरभ ने कह दिया वहा टेबल पर जाकर बाबूजी से भरवा लो तभी पास में खड़े एक बुजुर्...

गजल

तेरे सारे सवालों का तेरे भीतर जवाब है फकत नीचे अंधेरा है ऊपर जलता चराग है क्यों बेज़ार होता है इस दुनिया की बातों से तेरे भीतर शिवाला है गर तेरा दामन बेदाग है यहाँ से कई लोग गु...