ढाई साल की मुनिया घर पर खेलते खेलते अचानक सुस्त सी पड़ गयी और कुछ ही मिनटों में बेहोश हो गयी।
रजिया ने दौड़कर मुनिया को गोदी में लिया
और बदहवास सी हालत में अपने पति को बुलाया।
अफरोज देखो न मुनिया को अचानक क्या हो गया है।
अरे! ये तो बेहोश हो गई है चलो जल्दी अस्पताल चलते है।
तभी बड़ी अम्मा पान चबाते हुए बोली।
ये कोई जुकाम बुखार नही है जो अस्पताल में ठीक हो जाएगा,ये तो कोई ऊपरी हवा का असर है इसे दरगाह पर ले जा मौलवी साहब झाड़ा लगा देंगे सब ठीक हो जाएगा।
झाड़ा भी लगवाया,ताबीज भी बांधा, अभिमन्त्रित पानी भी पिलाया पर मुनिया की हालत बिगड़ती गई।
अस्पताल में डॉक्टरों ने बहुत कोशिश की ऑक्सीजन लगाई,ग्लूकोज चढ़ाया,तरह तरह के इंजेक्शन लगाए पर मासूम ने दम तोड़ दिया।
डॉक्टर ने अफसोस जाहिर करते हुए अफरोज और रजिया की तरफ देखा।
आप लोग इसे इतनी देर से यहाँ क्यो लाये,बेहोश होते ही क्यो नही आये।
दरअसल मौलवी साहब ने कहा कि ये ऊपरी हवा का साया है बस उसी में पांच घण्टे बरबाद हो गए।
ये कोई ऊपरी हवा या भूत प्रेत का असर नही है ये एक्यूट वाइरल इंसेफेलाइटिस है जिसमे एक एक मिनट बहुत कीमती होता है और आपने पांच घण्टे बरबाद कर दिए।
इन मासूमो का इलाज तो जरूरी है ही और हम जी जान लगाकर कर भी रहे है।
पर असल इलाज उस सोच का जरूरी है जो हम क्वालिफाइड डाक्टरो से ज्यादा उन ढोंगी बाबाओ और मौलवियो पर विश्वास करना सिखाती है।
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