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कविता वीररस

आंदोलन की आड़ में छुप,
लगे जिहाद के नारे है
हमको ये मंजूर नही है,
ये फ़साद के नारे है। 

देश विरुद्ध जो बोल रहे हो
कुछ तो थोड़ा शर्म करो,
या फिर चुल्लू भर पानी मे
जाओ जाकर डूब मरो। 

सारे मिलकर लड़े चुनाव थे
पर जनता ने दुत्कार दिया,
फिर से अपना रूप बदलकर
मिल गए अब ये सारे है। 

हम राम के वंशज है ठहरे
हमे हिंसा में विश्वास नही,
पर इतना तो तुम भी जानो
हम निस्सहाय निःश्वास नही। 

हिंद भूमि यह पूण्य वसुंधरा
हम सबकी यह माता है,
हम सबको है प्यारी ये माँ
हम भी इसके प्यारे है। 

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