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Showing posts from January, 2021

लघुकथा

शीर्षक- अपना कंधा अपनी सलीब।  तालियों की गड़गड़ाहट के साथ मंच पर रखे डायस से अपनी खनकती आवाज में रश्मि प्रभा ने अपनी बात कहना शुरू किया।  अमूमन कम ही होता है कि किसी साहित्यिक कार्यक्रम में पूरा सभागार खचाखच भरा हुआ हो।  पर आज साहित्य संगम संस्था के रजत जयंती समारोह में साहित्य की हर विधा के लेखक और पाठक मौजूद है।  अभी आप सब की उपस्थिति में आदरणीय मंत्री महोदय द्वारा श्री अश्विनी शर्मा जी की पुस्तक का विमोचन किया गया।  हम चाहेंगे कि अश्विनी शर्मा जी अपनी पुस्तक के बारे में कुछ कहे।  तालियों की गड़गड़ाहट के बीच अश्विनी शर्मा डायस तक पहुचे।  साथियो आप सभी के स्नेह और सम्मान से अभिभूत हूँ तथा साहित्य संगम परिवार का बहुत बहुत शुक्रगुजार भी। मैं कोई प्रोफेशनल लेखक  नही हूँ। मैने जो अपने जीवन मे देखा,सीखा, अनुभव किया बस वो ही लिखने की कोशिश की है।अचानक हुए एक सड़क हादसे ने मुझसे मेरा सब कुछ छीन लिया। पढ़ना लिखना सब कुछ छूट गया,जीवन बेमानी सा हो गया था।  गहन अवसाद के उन क्षणों में मेरे पोते ने मेरे दोस्त का किरदार अदा किया और मुझे फिर कलम थामने पर मजबूर क...
वेक्सीन की पतंग उड़ेगी,कोरोना उड़ जाएगा आकाश का काला बादल जल्द ही छट जाएगा।  रोग मुक्त होकर सारे हम मिलकर गंगा नहाएंगे उत्सव में उल्लसित होकर तिल के लड्डू खाएंगे। 
बस यूँही निकालो कानो से इयरफोन नदी का संगीत सुनो जो पहुचा सके तुंम्हे सुकूँ तक ऐसी रहा चुनो समय ही पूंजी हैं मत व्यर्थ गवाओ इसे समय मिले तो घर के बुजुर्गों की बात सुनो दुनिया क्या कहती हैं क्या नही ये मत सुनो कुछ पल मौन बैठो अपने दिल की बात सुनो बड़े मशहूर हो फेसबुक और ट्विटर पर यारो कभी पापा के पास बैठो उनके जज्बात सुनो चलो छोडो मत मनो मेरी न मेरी बात सुनो आहट को पहचानो आने वाले कल की बात सुनो                                 डॉ दिलीप बच्चानी                                 पाली राजस्थान

गजल

इशारो से आँख से अदा से बात करती है मोहब्बत कब भला ज़ुबाँ से बात करती है।  पहली किरण गिरती है जब उसके पानी पर देखना बहती नदी तब खुदा से बात करती है।  गुल भृमर के मन को जाने भीच ले खुदको कुदरत भी देखो किस हया से बात करती है।  बेसबब भटकती नही वो सारे गुलशन में हर कली हर फूल औ लता से बात करती है।  सुबह कोई रंग भरता शाम कैसे स्याह होती पंखुड़ी पर बैठ शबनम फ़िजा से बात करती है।