मेरी औरत। आपने भी अनुभव किया होगा की कई लोग अपनी पत्नी का परिचय देते हुए या फिर उसके संदर्भ में बात करते हुए एक शब्द का प्रयोग करते है। *ये मेरी औरत है* ये शब्द कानो को कुछ सुहाता नही है चुभता है,खटकता है,अखरता है।और जो ध्वनि कानो को न सुहाए वो मस्तिष्क के लिए भी गुणकारी नही हो सकती। हमारी सनातन परंपरा में पत्नी को भार्या,संगिनी,सहगामिनी,सहधर्मिणी जैसे शब्दों से संबोधित किया जाता है और जो लोग इन शब्दों के मर्म को समझते है वे अच्छी तरह जानते है कि ये शब्द पति पत्नी की समानता के प्रतीक है। हम तो अपने अराध्य देवादिदेव महादेव को भी अर्धनारीश्वर रूप में पूजते है,नमन करते है। चलते चलते एक शेर देखिए। सहभागी हो साथी हकदार नही हो हमसफर हो राह के खरीदार नही हो।