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Showing posts from October, 2022

विमर्श - 6

मेरी औरत।  आपने भी अनुभव किया होगा की कई लोग अपनी पत्नी का परिचय देते हुए या फिर उसके संदर्भ में बात करते हुए एक शब्द का प्रयोग करते है। *ये मेरी औरत है* ये शब्द कानो को कुछ सुहाता नही है चुभता है,खटकता है,अखरता है।और जो ध्वनि कानो को न सुहाए वो मस्तिष्क के लिए भी गुणकारी नही हो सकती।  हमारी सनातन परंपरा में पत्नी को भार्या,संगिनी,सहगामिनी,सहधर्मिणी जैसे शब्दों से संबोधित किया जाता है और जो लोग इन शब्दों के मर्म को समझते है वे अच्छी तरह जानते है कि ये शब्द पति पत्नी की समानता के प्रतीक है।  हम तो अपने अराध्य देवादिदेव महादेव को भी अर्धनारीश्वर रूप में पूजते है,नमन करते है।  चलते चलते एक शेर देखिए।  सहभागी हो साथी हकदार नही हो हमसफर हो राह के खरीदार नही हो। 

स्कैच

कागज पेंसिल लेकर क्यो न निकली जाए दिल की भड़ास बनाया जाए एक स्कैच।  बन गया भद्दा सा बेतरतीब स्कैच शायद ये मैं ही हूँ।  या फिर हम सब। 

प्यार भरी प्रताड़ना।

पिछले एक साल से देख रहा हूँ मेरे परिवार के लोग ही नही,आस पड़ोस वाले,रिश्तेदार, परिचित।और तो ओर दूर दराज के सगे संबन्धि भी बड़े अजीब किस्म के लोग है।  मुझे देखते ही बड़ी विचित्र सी भाषा का प्रयोग करते है। *अले ले ले,उलू लू लू* कोई उत्साह में मुझे उठाकर जबरदस्ती हाथों में झूला झुलाने लगता है तो कोई कोई अतिउत्साही मझे हवा में उछलकर लपकने लगता है।  मैं मजबूर न कुछ कह सकता हूँ नाही कुछ कर सकता हूँ।सब कुछ झेलना पड़ता है चुप चाप।  इतने ज्यादा प्यार का दिखावा करने वाले ये मेरे घर वाले मेरी जरा सी सूसू पॉटी तक को बर्दाश्त नहीं कर सकते, मुझे बांध देते है घँटों तक डायपर से।  औऱ जैसे ही किसी हाथ बढ़ता है मेरे गालो को दबाने के लिए तो ऐसे लगता है जैसे नर्स तीखी नुकीली सुई लेकर आ रही हो मेरी तरफ।  हे! ईश्वर मैने सुना है तू सुनता है बच्चों की प्रार्थना।  या तो मुझे जोड़ दे पुनः गर्भनाल से,या मुझे जल्दी से कर दे बड़ा ताकि मै पा सकू इस प्यार वाली प्रताड़ना से मुक्ति। 
पिता दिलाता पुत्र को, चंदा, स्केल,प्रकार मानो माटी को घड़े जैसे कोई कुम्हार।  भरके बस्ते में पुस्तकें भेजे ज्ञान की राह  दिखा रहा है वो उसे गुरुकुल का संसार।