पिछले एक साल से देख रहा हूँ मेरे परिवार के लोग ही नही,आस पड़ोस वाले,रिश्तेदार, परिचित।और तो ओर दूर दराज के सगे संबन्धि भी बड़े अजीब किस्म के लोग है।
मुझे देखते ही बड़ी विचित्र सी भाषा का प्रयोग करते है। *अले ले ले,उलू लू लू*
कोई उत्साह में मुझे उठाकर जबरदस्ती हाथों में झूला झुलाने लगता है तो कोई कोई अतिउत्साही मझे हवा में उछलकर लपकने लगता है।
मैं मजबूर न कुछ कह सकता हूँ नाही कुछ कर सकता हूँ।सब कुछ झेलना पड़ता है चुप चाप।
इतने ज्यादा प्यार का दिखावा करने वाले ये मेरे घर वाले मेरी जरा सी सूसू पॉटी तक को बर्दाश्त नहीं कर सकते, मुझे बांध देते है घँटों तक डायपर से।
औऱ जैसे ही किसी हाथ बढ़ता है मेरे गालो को दबाने के लिए तो ऐसे लगता है जैसे नर्स तीखी नुकीली सुई लेकर आ रही हो मेरी तरफ।
हे! ईश्वर मैने सुना है तू सुनता है बच्चों की प्रार्थना।
या तो मुझे जोड़ दे पुनः गर्भनाल से,या मुझे जल्दी से कर दे बड़ा ताकि मै पा सकू इस प्यार वाली प्रताड़ना से मुक्ति।
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