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Showing posts from March, 2025
अहसास को भी क्या बांध जा सकता है किसी गणित किसी व्यकरण मे  किसी कौमा, ब्रेकेटिंवर्टेड कौमा में।  अहसास तो एक समुदर है जहा है पानी रेत और नारियल पानी। 

गजल

जहाँ मौत के बाद के सपने बेचे जाते है वो किस्से यहाँ मजहब कहलाए जाते है। जीते जी दो घूट भी पीना हराम है जिन्हें उन्हें शराब के दरिया दिखलाए जाते है।  यहाँ तो हुस्न को छुपाते पर्दे की आड़ में वे नादाँ हूरो के हुस्न से बहलाए जाते है।  जो जीते है तमाम उम्र तपन में उमस में वे जहन्नुम की आग से दहलाए जाते है।  हैवन, स्वर्ग,जन्नत कहो या कहो बहिश्त मासूम दिल कुछ यूँही बरगलाए जाते है।  अगर संतुष्ट हो तो घर भी जन्नत ही है भटकने वाले तो यूँ भी भरमाये जाते है।  वो परम् तो मौजूद है तुम में और मुझ में और हम यूँही बेवजह घबराये जाते है।