बाद में शिवालों को सजाया जाये
पहले हर पेट तक निवाला जाये
कही धूप है कही तरुवर की छाँव
कोई बीच का रास्ता निकाला जाये
तंग गलियो में सहमी मुस्कराहटें
किसी तरह वहाँ उजाला जाये
अलिफ़ बे क्या है कुछ इल्म समझ
पर खाली पेट है कैसे समझाया जाये
परछाईया डराती सताती रुलाती है
चलो माँ के आँचल में छुप जाया जाये
दिलीप बच्चानी
पाली मारवाड़
राजस्थान
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