जीवन की शिक्षा ( कविता )
रास्ते मे पड़ने वाला मेरा विद्यालय
पूछता है मुझसे कई सवाल ?
एक दिन उसने मुझसे कहा
क्यो उलझा रहता है तू
आर्थिक संकट में,
जबकि मैंने तुझे सिखाया था
मितव्ययता का गणित।
फिर क्यो बिगड़ गया तेरे जीवन का अर्थशास्त्र।
एक दिन वो बोला
क्यो भागता है तू पाश्चात्यकरन के पीछे
जबकि मैन तुझे दिया था
मातृभाषा और राष्ट्रभक्ति का ज्ञान।
एक दिन कुछ यूँ बोला
कैसे घुल गयी तेरे शहर में ये जहरीली हवा
जबकि तुझे सिखाया गया था प्रकृति से प्रेम और
पर्यावरण की रक्षा।
एक दिन पूछ बैठा
क्यो घूम रहा है इन नकली बाबाओ के चक्कर मे
क्या मेरा सिखाया हुआ नीतिशास्त्र
अब तेरे काम का नही रहा।
फिर एक बार ये सवाल किया
और ये तेरा पेट क्यो फूल कर बाहर आ गया है,
स्कूल में एक घण्टा खेलकूद का भी तो था। भूल गया खेलकूद और व्यायाम का महत्व।
बहुत सवाल करता है मेरा विद्यालय मुझसे,
इसलिए कभी कभी परेशान होकर
रास्ता बदल लेता हूँ।
पर सवाल पीछा कहाँ छोड़ते है।
©डॉ दिलीप बच्चानी
पाली मारवाड़ राजस्थान
9829187615
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