Skip to main content

घर मे जगह (लघुकथा )

मैं तो कितनी बार आपसे कह कह के तक गई की कोने वाले स्टोर रूम में एक पलंग और पँखा लगवा दीजिये। अलका पलँग की चद्दर ठीक करते हुए बोली।
माँजी को वहाँ शिफ्ट कर देते है कितनी दिक्कत होती है जब कोई मेहमान घर आ जाये तो।
और फिर गुड्डू भी तो बड़ा हो रहा उसके लिए भी जगह चाहिए।
अखिलेश ने मोबाइल से फोन लगाया,
हल्लो शिवम इलेक्ट्रॉनिक्स 8×8 के कमरे में ए सी लगवाना है कितने का होगा ,
अच्छा ठीक है मैं दुकान पर आकर मिलता हूँ।
अलका एकदम बोल पड़ी ए सी की क्या जरूरत है और वैसे भी माँजी तो ए सी चलती ही नही है।
ये ए सी माँ के लिए नही तुम्हारे लिए लगवा रहा हूँ।
गुड्डू की शादी के बाद अगर तुम्हें स्टोर रूम में शिफ्ट होना पड़ा तो तुम बिना ए सी के कैसे रहोगी।
अलका की नजरें झुक चुकी थी।

Comments

Popular posts from this blog

युद्ध का बदलता स्वरूप।

लेबनान में हिजबुल्लाह आतंकियों पर हुए पेजर अटैक ने मध्यपूर्व एशिया में चल रहे युद्ध का परिदृश्य ही बदल कर रख दिया है। हिजबुल्लाह के चीफ ने अपने आतंकियों को मोबाईल न उपयोग करने की सलाह दी थी, क्योकि उसे लगता था कि मोबाईल को ट्रेस किया जा सकता है।  इसलिए वो लोग पेज़र का इस्तेमाल करते थे, अब वो ही पेज़र बम की तरफ फट कर उनका ही विनाशक बन गया।  दुनिया मे जितने भी युद्ध हुए है पलड़ा उसी का भारी पड़ता है जो परंपरागत युद्ध शैली से हटकर युद्ध करता है।  उदाहरण के रूप में महाभारत के युद्ध को ही देख ले,महाभारत युद्ध में 14वे दिन कौरव घटोत्कच की युद्ध शैली देखकर हतप्रद रह गए। अपनी सेना के पैर उखड़ते देख दुर्योधन ने कर्ण से देवेंद्र द्वारा दी हुई अचूक शक्ति घटोत्कच पर चलवा दी और कुरुक्षेत्र का युद्ध अपने अंत की ओर बढ़ चला। इसी प्रकार लंबे अरसे तक चले द्वितीय विश्वयुद्ध में अमेरिका द्वारा हिरोशिमा और नागासाकी पर हुए परमाणु हमले ने दूसरे सभी देशों को घुटनों पर ला दिया और एक नई वैश्विक व्यवस्था का निर्माण हुआ।  अभी वर्तमान में चल रहे रूस यूक्रेन युद्ध को ही देख लीजिए,रूस के शक्तिशाली टैंक ...

गजल

छत,दीवार,दरवाजे बगावत करते है क्या क्या सभाले नीव का पत्थर आखिर। वो तीर,तलवार,खंजर सब मेरे लिए है भला कब तक बचाये कोई सर आखिर।  इस मरुथल में दूर तक साया ही नही वोही जाने कैसे तय होगा सफर आखिर।  इस शहर में अपने गांव वाली बात नही इतने जतन से भी मेरा न हुआ शह्र आखिर। जो आये और भिगो दें मेरे अंतस को न जाने कब आयेगीं वो लहर आखिर। टूटता ही जा रहा हूँ अनगिनत टुकड़ो में पता ही नहीं होगी कब उसकी महर आखिर।  वो कहते है जिंदगी अमृत के समान है इससे तो बहुत बेहतर होगा जहर आखिर। 

दो शेर

गुमसुम रहो उदास रहो लोग खुश हारे रहो परास्त रहो लोग खुश। वो तुम्हें अपने जैसा देखना चाहते उनकी तरह विषाक्त रहो लोग खुश।