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घोटाले कविता

भ्र्ष्टाचार भविष्य है और
वर्तमान घोटाले है
संसद के ये सभी जानवर तीखे दांतो वाले है।

आजकल तो जब भी देखो
घोटाले डर घोटाले है
पहले साले आग लगते
बाद में उसमे घी डाल है
अपनी भारत माता को ये तो जलाने वाले हैं
संसद के ये सभी जानवर तीखे दांतो वाले हैं

गेहू यूरिया चारा गारा सब कुछ चबा ये जाते हैं
गहन गत्ता रुपया पैसा सब कुछ दबा ये जाते है
भूखे भारत को देखो ये बेच के कहने वाले है
संसद के ये सभी जानवर तीखे दांतो वाले है

क्या भारत मे पैदा सारे आज शिखण्डी होते है
संसद के गलियारे देखो अब तो मंडी होते है
जनता के सेवक कहलाते फिर भी घमंडी होते है
अपने देश मे रहने वाले लगते बाहर वाले है
संसद के ये सभी जानवर तीखे दांतो वाले है

धवल वस्त्र धारी ये सारे सम्मनानित व्यक्ति है
लेकिन काला इनका मन है और धंधे इनके काले है
संसद के ये सभी जानवर तीखे दांतो वाले है

भ्र्ष्टाचार मिटाना है तो इनको पहले हटाना होगा
लेके मशाले हाथो में जयपुर दिल्ली जाना होगा
नही तो भारत माता के ये टुकड़े करने वाले है
संसद के ये सभी जानवर तीखे दांतो वाले है।

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