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Showing posts from May, 2022

गजल बेटा।

सत्रहवाँ साल लगा है संभलना प्यारे जीवन का संध्याकाल है संभलना प्यारे। पाने को सारा आकाश है गर चाहो तो खोने को बहुत कुछ है संभलना प्यारे।  बचपने की कोमल पगडंडी पीछे रह गई आगे एक कठोर डगर है संभलना प्यारे।  अल्हड़पन, नादानियां,बदमाशियां छोड़ो अब सयंम का समय है संभलना प्यारे।  कुछ दूर तक मैं साथ हूँ और माँ भी साथ पर आगे तुम्हारा सफर है संभलना प्यारे। 

उपयोगिता(लघुकथा)

सेकेंड क्लास स्लीपर के कम्पार्टमेंट में आमने सामने की छह और साइड की दो सीटों को मिलाकर कुलजमा हम आठ लोग सफर कर रहे थे।  कुछ मोबाइल में व्यस्त थे कुछ बातों में कोने वाले सहयात्री ने प्लेटफॉर्म पर अखबार बेच रहे लड़के से एक राष्ट्रीय दैनिक अखबार खरीद लिया। ट्रेन चलते ही वो अखबार खोल कर उसमें मशगूल हो गए। मै बगल वाली सीट पर उन्हें अखबार पढ़ता हुआ देख रहा था तभी उन्होने अखबार का एक पेज निकाल कर मुझे दे दिया।एक एक पेज कर मैने और लगभग सभी यात्रियों ने अखबार पढ़ लिया।  किसी को बिजनेस न्यूज में रुचि थी तो किसी को स्पोर्ट्स की खबरों,किसी ने संपादकीय लेख पढ़ें तो किसी ने लोकल समाचार।  अब वो अखबार इकठ्ठा करके मोड़ कर कोने में दबा दिया गया था।  अभी कुछ ही समय पहले जिस अखबार मे सबकी रुचि थी अब वो रद्दी हो चुका था।  पता नही क्यो जीवन की संध्या वेला में उस रद्दी अखबार से अपनापन सा लग रहा था।  शायद हम दोनों की ही उपयोगिता खत्म हो चुकी थी। 

जिप

जिप मनुष्य का बनाया हुआ  बहुत बड़ा अविष्कार है।  काश! एक जिप मानव शरीर में भी होती मैं रोक पाता मस्तिष्क में बहते अनगिनत विचारों को। या फिर रोक लेता ह्रदय में उठती पीड़ा की  लहरों को।  इसी जिप से मैं रोकता अनगिनत वेदनाओं को जो मजबूर करती हैं मुझे द्रवित होने को।   है! ईश्वर काश मैं लगा सकता ये जिप उन लोगो के शरीर पर जो करते है मासूम बच्चियों का बलात्कार। 

कविता

मैं अच्छा हूँ बहुत अच्छा हूँ बहुत ही ज्यादा अच्छा हूँ।  पर कब तक? जब तक मैं उपयोगी हूँ।