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गजल बेटा।

सत्रहवाँ साल लगा है संभलना प्यारे
जीवन का संध्याकाल है संभलना प्यारे।

पाने को सारा आकाश है गर चाहो तो
खोने को बहुत कुछ है संभलना प्यारे। 

बचपने की कोमल पगडंडी पीछे रह गई
आगे एक कठोर डगर है संभलना प्यारे। 

अल्हड़पन, नादानियां,बदमाशियां छोड़ो
अब सयंम का समय है संभलना प्यारे। 

कुछ दूर तक मैं साथ हूँ और माँ भी साथ
पर आगे तुम्हारा सफर है संभलना प्यारे। 

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