मनुष्य जीवनपर्यंत विचारों से घिरा रहता है, जब आप सोचते है कि आप कुछ नही सोच रहे तब भी आप कुछ न कुछ सोच रहे होते है।
यहाँ तक की नींद में आये स्वप्न भी आपके ही विचारो का प्रतिरूप होते है।
विचार ही मनुष्य को सफल या असफल बनाता,विचार ही हमे अच्छा या बुरा बनाता है।
एक सदविचार से ही किसी महान ग्रँथ की नींव पड़ती है और किसी कुबुद्धि के मस्तिष्क में जन्मे एक कुविचार से ही समाज मे अराजकता फैलती है।
क्रोंच पक्षी के क्रंदन को सुनकर महर्षि वाल्मीकि के मन मे जन्मे विचार ने ही रामायण जैसा महान ग्रँथ लिख दिया। और यहूदियों के प्रति नफरत के कुविचार ने हिटलर से महा नरसंहार करवा दिया।
भीष्म पितामह के प्रति जन्मे प्रतिहिंसा के विचार से ही शकुनी ने महाभारत करवा दी,और अर्जुन को पुरुषार्थ का मार्ग दिखाने के सदविचार ने पूर्णावतार योगेश्वर श्री कृष्ण से भगवत गीता जैसा विलक्षण ज्ञान कहलवा दिया।
दुख का कारण खोजने के विचार ने सिद्धार्थ को महल त्याग कर बुद्ध होने के मार्ग पर चलना सीखा दिया,तो अंग्रेजो द्वारा काले लोगो के प्रति नफरत का प्रतिरोध करने के विचार ने दुनिया को महात्मा गांधी, मार्टिन लूथर किंग और नेल्सन मंडेला जैसे अहिंसावादी नेता दिए।
वही दूसरी ओर खालिस्तान की सोच के विचार ने भिंडरवाला,तमिल इल्लम की सोच रखने से लिट्टे प्रमुख प्रभाकरन को जन्म दिया।
अलगाववाद,आतंकवाद, नक्सलवाद ये सब भी एक विचार से ही जन्मे और पनपे है।
विचारहीन होने से विचारवान होना श्रेष्ठ है और विचारवान होने के लिए अध्ययन,मनन,चिंतन की आवश्यकता होती है।
किसी दार्शनिक ने ठीक ही कहा है।
"आपका मस्तिष्क एक खूबसूरत फूलों का बगीचा है और कोई भी अपने बागीचे में सड़े हुए मुरझाए फूल नही रखना चाहता"।
तो जब भी आपके दिमाग मे कोई नकारात्मक विचार उभरे उसे अपने मस्तिष्क के बगीचे से सड़ा हुआ फूल समझकर निकाल फेकिये।
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