इसकी कट रही,उसकी गुजर रही है जिंदगी जीने वालों की कमी बहोत है। दौड़ दौड़ कर कितना दौड़ोगे आखिर पाँव तुम्हारे दो और यहाँ जमी बहोत है। कुछ उदास है तो कुछ है खोई खोई सी कुछ पथराई सी तो कुछ में नमी बहोत है। ऐ मुश्किलों गुरुर न करो इतना खुदपर टकराने के लिए अकेले हमी बहोत है। ढूंढ रहा हूँ जाने कब से बस्ती में इंसान यू तो यहाँ देखने को आदमी बहोत है।