भारतीय संस्कृति की सबसे बड़ी पहचान उसका परिवार है। यहाँ रिश्ते सिर्फ खून के नहीं, बल्कि भावनाओं और संस्कारों से भी जुड़े होते हैं। संयुक्त परिवार की परंपरा भारतीय समाज की रीढ़ रही है, जहाँ तीन-चार पीढ़ियाँ एक साथ रहती हैं, एक-दूसरे का सहारा बनती हैं और जीवन मूल्यों को आगे बढ़ाती हैं। ऐसे ही संस्कार शर्मा परिवार में भी कूट कूट कर भरे हुए थे। जहाँ सभी लोग एक दूसरे का सम्मान करते हुए सामंजस्य के साथ सौहार्दपूर्ण वातावरण में साथ साथ रहते थे। शर्मा परिवार शहर का एक सम्मानित,जाना पहचाना परिवार था,जिसके मुखिया देवनारायण जी शर्मा रिटायर्ड बैक मैनेजर थे। दोनो बेटे अजय और विनोद सरकारी कर्मचारी,अजय बैंक में तो विनोद अध्यापक के पद पर कार्यरत थे। घर की रीढ़ की हड्डी थी देवनारायण शर्मा जी की पत्नी सरस्वती जिनके इर्द गिर्द इस परिवार की ग्रहस्ती चलती थी। दोनो बहुए सास का घर के काम मे बखूबी हाथ बटाती तथा नित रोज भांति भांति के व्यंजन पकते, पूरा परिवार एक साथ बैठकर उन व्यंजनों का आनंद लेता। सुबह की सामुहिक पूजा से शुरू होने वाला दिन हँसी खुशी कैसे बीतता पता ही नही चलता। पर वो कहते ...