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Showing posts from October, 2018

घोटाले कविता

भ्र्ष्टाचार भविष्य है और वर्तमान घोटाले है संसद के ये सभी जानवर तीखे दांतो वाले है। आजकल तो जब भी देखो घोटाले डर घोटाले है पहले साले आग लगते बाद में उसमे घी डाल है अपनी भार...

दोहे

h1 जितना मालिक ने दिया उतने में संतोष, दूजा आगे बढ़ रहा इसमें किसका दोष। 2 कभी नही थम सकता है उसकी आंख का नीर जिसने समझी दूजे की पीर को अपनी पीर। 3 सूरज दिन भर का थका चला सांझ के गां...