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Showing posts from June, 2017

गीत

मन की बाते कह देते हो तुम भी मेरे जैसे हो बाहर भीतर कोई न अंतर तुम दर्पण के जैसे हो जैसे बहता निश्छल दरिया तुम दरिया से बहते हो जैसे बढ़ता कोई पौधा तुम तरुवर के जैसे हो सागर के भ...

गजल

चलो दिल को यूँही बहलाया जाये पुरानी यादो को पास बुलाया जाये गुजरा वक्त तो आ ही नही सकता कुछ लम्हो को पास बिठाया जाये सफर की धूल से सराबोर होकर खुद को फिर सजाया सँवारा जाये म...

गजल

बाद में शिवालों को सजाया जाये पहले हर पेट तक निवाला जाये कही धूप है कही तरुवर की छाँव कोई बीच का रास्ता निकाला जाये तंग गलियो में सहमी मुस्कराहटें किसी तरह  वहाँ उजाला जाय...

गजल

मेरे भीतर कुछ तो जल रहा है कही कोई लावा है जो पिघल रहा है कही सपनो की अर्थियां जल चुकी लेकिन इस राख में कुछ सुलग रहा है कही फिर पीछे देखकर मायूस होना चाहता हूँ कुछ तो है जो आज बद...

गजल

जो थकता है थककर के चूर होता है अपने कमाए हर निवाले पर उसे गुरुर होता है जी तोड़ मेहनत कर जो अपना पेट भरता है उसकी आँखों में जा कर देखना नूर होता है क्या नशा देंगे प्याले मयकशी य...

गीत

मत खोदो ये गहरा है अहसासों का दरिया है छुपे हुए हर सीप में देखो छुपा हुआ एक सपना है|            आने वाला वक्त है जो वो ख्वाबो में पलता है मेरा गुजरा बचपन देखो अब नींदों में चलत...

मुक्तक

कतरा कतरे से कैसे जुदा हो जाता है जाने कौन सा जहर नसों में उतर जाता है मै समझता हूँ हर फूल को मुक्कदस लेकिन हर दफा खार ही दामन से लिपट जाता है