मैं तो कितनी बार आपसे कह कह के तक गई की कोने वाले स्टोर रूम में एक पलंग और पँखा लगवा दीजिये। अलका पलँग की चद्दर ठीक करते हुए बोली। माँजी को वहाँ शिफ्ट कर देते है कितनी दिक्कत ह...
जब से फेसबुक तैयार हो गयी है तब से जिंदगी इश्तेहार हो गईं है लड़के बेचारे लाइक्स को तरसे लड़कियों पर भरमार हो गयी है अब हर रोज लिखते है वॉल पर कलम बेचारी बेकार हो गयी है यहाँ सब ...
टुटते सपने (लघुकथा) साँवला रंग लंबा ऊँचा कद साधारण नयन नक्श आत्मविश्वास से लबरेज सलोनी ट्रेक सूट पहनकर जब अपने कॉलेज या मोहहले की गली से निकलती तो किसी लड़के की हिम्मत न होत...