क्या नही है दातार के दर पर
बिन मांगे झोलियाँ भर देता है।
कुछ कहने की जरूरत नही
वो पहले ही काम कर देता है।
जैसी होती है भावना जिसकी
वो वैसे ही उसको वर देता है।
वो देता है पेट भरने को अन्न
ऒर वो रहने को घर देता है।
वो ही है जो सुनता है सबकी
वो ही दुआओं में असर देता है।
खुशनुमा शामें भी उसी ने दी
और वो सुहानी सहर देता है।
उसी ने थामा है हाथ सबका
वो ही सुकून के पहर देता है।
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