होली पर एक लघुकथा देखिये
बदरंग होली
आसमान में बादल और मौसम में ठंडक देखकर होली से दो दिन पहले आज उसके माथे पर चिंता की लकीरे थी
तभी नौ साल का बेटा ठेले से पिचकारी उठाते हुए बोला बापू मैं ये बन्दूक वाली पिचकारी लूंगा
बेटे के सर पर हाथ फेरते हुए वो बोला साहूकार से चार की मिती के ब्याज पर पैसा लेकर ये ठेला लगाया था
पर इस मौसम में ये मॉल बिकना नामुमकिन लगता है
हो सकता है तुझे स्कुल से छुड़वाकर सेठ की दुकान पर फिर कप प्लेट धोने भेजना पड़ेगा
कुछ ही पल पहले पुलकित और उत्साहित बच्चे को अब होली का इंतजार नहीं था
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