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लघुकथा

देहली की मल्टीनेशनल कंपनी में काम करने वाली स्वाति अपने चार मेल कलीग्स के साथ फील्ड वर्क निपटाकर हरियाणा के जलौला कस्बे के छोटे से बस स्टेण्ड की बेंच पर बैठी अपने कलीग्स के साथ बातो में मशगूल थी
एक तीस पैतीस साल का पतला सा ग्रामीण वहाँ आकर स्वाति से बोला
आंटी जी ये बैग जरा सरका लो तो हम भी बैठ जाये
स्वाति भड़क उठी यू सेन्सलेस फूल मैं क्या तुझे आंटी लगती हूँ
न जाने कैसे कैसे नमूने भरे पड़े है दुनिया मे
ओह ! गॉड ये बस कब आएगी
ग्रामीण सहम कर कोने में खड़ा हो गया
थोड़ी देर बाद ज्योही स्वाति की नजर मोबाइल से हटी
वो चीख पड़ी ओ माई गॉड
उसके पैरों के पास काला सॉप फन फैलाये बैठा चारो कलीग्स दूर भाग चुके थे
डर के मारे स्वाति का चेहरा पिला पड़ चुका था साँप कुछ करता उसके पहले ही बिजली की फुर्ती से ग्रामीण के हाथो में सांप की गर्दन थी और दूसरे ही पल वो उसे दूर नाले में फेंक चुका था
आप ठीक तो है न आँटी जी
स्वाति की नजरें झुकी हुई थी
                    
                     डॉ दिलीप बच्चानी
                     पाली मारवाड़ राजस्थान
                     9829187615

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