लघुकथा ( कुप्रथा )
राबिया ने वो जिल्लत औऱ हिकारत भरा वक्त कैसे गुजारा था या तो वो जानती थी या उसका अल्लाह जनता था |
जब से घर लौटी थी गुमसुम सी बुझी बुझी सी छोटे से वसीम को अपने सीने से चिपकाए अपने कमरे में सुबक रही थी |
देर रात शब्बीर कमरे में आये
अल्लाह का शुकर था आज सादे में थे |
एक नजर राबिया पर डालते हुए बड़े लापरवाह लहजे में
तुम बेवजह पशेमाँ होती हो बेगम दुनिया मे क्या तुम पहली हो जिसका हलाला हुआ है और जब हमें कोई रंज नही तो तुम क्यों हलकान होती हो |
औऱ तुम्हे तो फक्र होना चाहिए कि तुमने आसमानी किताब में बताए शरीया पर चलकर बड़ा नेक काम किया है |
राबिया ने कोई जवाब न दिया पर वो जवाब सोच चुकी थी |
सुबह के लोकल अखबार की सुर्खियां थी
" मशहूर बिल्डर शब्बीर अली शाह का दम घुटने से इंतकाल " |
डॉ दिलीप बच्चानी
पाली मारवाड़ राजस्थान
9829187615
Bahut Khoob Dr. Saab......
ReplyDeleteJordar dileep g
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद
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