निर्णय (लघुकथा )
इंसानी जरूरत की हर चीज से सजे शानदार कमरे में तनुजा कम्प्यूटर के कीबोर्ड के साथ व्यस्त थी |
शहर के मशहूर वकील द्वारकेश्वर सिन्हा कमरे में आये |
आइए पापा बैठिए
नही मुझे क्लब पहुचना है |
क्या सोचा तुमने राजवीर के बारे में
दरअसल पापा अभी कालेज में इतनी बिजी हूँ की कुछ सोच ही नही सकी |
छोड़ो इस मामूली नौकरी को राजवीर के साथ शादी के बाद ऐश करोगी ऐश |
तनुजा कुछ उलझन में थी
तभी माँ ने कंधे पर हाथ रखते हुए पूछा
क्या सोच रही हो |
माँ वो पापा आज फिर राजवीर के लिए पूछ रहे थे कुछ समझ नही आ रहा क्या करूँ |
एक तरफ नितिन है जिसे मैं अच्छे से जानती हूँ और दूसरे तरफ राजवीर की शानो शौकत |
फैसला तो तुझे करना है बेटी
एक पड़े लिखे सुलझे हुए आदमी की संगिनी बनना है या एक रईस साहूकार की अनुगामिनी |
मेरी तरह ?
©डॉ दिलीप बच्चानी
पाली मारवाड़ राजस्थान
9829187615
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