वार्तालाप का माध्यम नही है
हिंदुस्तान की जान है हिंदी।
चहुँओर फैली सुगंध इसकी
माँ भारती का मान है हिंदी।
परदेस में भी पांव पसार रही
मेरा तो अभिमान है हिंदी।
देश को एक सूत्र में बंधने वाली
जन जन का सम्मान है हिंदी।
सारी बोलियां अपनी ही है पर
हमको माँ समान है हिंदी।
©डॉ दिलीप बच्चानी
पाली मारवाड़ राजस्थान
9829187615
Comments
Post a Comment