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गजल

कैसा रहा आपका इस बार का सफर
खत्म तो होता ही है हर बार का सफर।

कुछ लोग चल रहे है रफ्तार से बहुत
मानो कर रहे हो आर पार का सफर।

नाव का सफर अलग है यहाँ और
अलग है  यहाँ पतवार का सफर।

कुछ का यकीन है यहाँ रोशनाई पर
कुछ कर रहे है यहाँ तलवार का सफर।

बुलंदी छू ली पर मुक्कमल नही हुए
पीछे जो रह गया था परिवार का सफर।

कहा से चले औ कहा ला के रख दिया
सोचना कभी कैसा रहा अखबार का सफर।

हमे पता ही नही कहा खत्म होगा ये
हम कर रहे है फालतू बेकार का सफर।

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