कोई न समझा कोई न जाना
उलझा - उलझा ताना - बाना।
कौन रहा है और कौन रहेगा
चलता रहता आना - जाना।
ये मेरा है और वो है उसका
खेल - तमाशा खोना - पाना।
तेरा - मेरा साथ तभी तक
जब तक अपना आबो - दाना।
जंगल - जंगल केवल भटकन
ढूढता फिरता ठौर - ठिकाना।
©डॉ दिलीप बच्चानी
पाली राजस्थान।
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