कुछ यूँही....
कंटीले पौधे
खारा पानी
बेस्वाद जिंदगी
बेकार जवानी
चलती साँसे
घड़ी की सुइयां
रुकता दरिया
गंदला पानी
उनकी यादे
झूठे सपने
उनिंदि आँखे
सिर्फ पशेमानी
उखड़ी साँसे
झुकते कंधे
ढलता सूरज
खत्म कहानी।
©डॉ दिलीप बच्चानी
पाली मारवाड़
राजस्थान।
9829187615
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