न सदा दिन रहा है,न सदा रात रहेगी
मेघो को बरसने दो ये नदी फिर बहेगी।
गिर जाते वट वृक्ष समय विपरीत हो तो
हरी रहेगी वो डाली जो तूफान सहेगी।
मिटेगी कालिमा धवल आकाश होगा
निशानी स्मृति पटल पर फिर भी रहेगी।
सहअस्तित्व,समन्वय और सजगता
इस मूल मंत्र की कहानी पीढ़ियाँ कहेगी।
कई प्रलय काल भी देखे है इस धरा ने
उस परम् की सत्ता न ढही है न ढहेगी।
मुश्किले आती रही है आती जाती रहेगी
जिंदगी रुकती नही है न अब रुकेगी।
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