क्या मैं एक शरीर हूँ?
नही।
शरीर तो मुर्दे के पास भी होता है।
क्या मै एक मस्तिष्क हूँ?
या फिर रक्त शिराओ और धमनियों को
रक्त पहुचाने वाला ह्रदय!
अस्थियो से बना स्केलेटन,
या गोरी या काली त्वचा।
या अन्तःस्त्रावी ग्रथियों से
प्रवाहित कोई हार्मोन,जो
कभी कभी करता है मुझे
उत्तेजित।
नही नही ये सब मैं नही हो सकता।
मैं एक भेद हूँ
वो भेद जो जीव और शव में होता है
वो भेद जो प्रकाश और तिमिर में होता हैं।
जय गणेश ,तत्व दर्शन और विज्ञान की फिलॉसफी में उलझा प्रसंग ,समन्वय की प्रक्रिया से गुजर कह रहा :-सागर समाया बून्द में 👌 अच्छी रचना
ReplyDeleteVery nice
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