आखिरी फर्नीचर(कविता)
जिंदगी भर भटकता है
आराम की तलाश में!
काम करने के लिए
कुर्सी पर आरामदायक कुशन
बैठने के लिए गद्देदार सोफा,
सोने के लिए आलीशान पलंग,
नर्म मुलायम बिस्तर।
ऑफिस,घर,कार हर जगह बस
आराम की तलाश।
पर भागते दौड़ते रूह कहा
पा लेती है आराम।
मन मचलता सिसकता रहता है,
पाने को सुकून,विश्राम।
मिलता है आराम, सुकून,विश्राम
आखिरी फर्नीचर पर।
न कुछ चुभने का डर न जलने का दर्द।
केवल शांति,चिरनिंद्रा।
डॉ दिलीप बच्चानी
पाली मारवाड़,राजस्थान।
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