इन बड़े शहरों का प्रदूषित वातावरण,सुबह की सैर भी फायदा देने की बजाय नुकसानदायक लगने लगती है।
सरिता देवी चाय का कप पकड़ाते हुए बोली अब आपको यहां कौसानी जैसी शुद्ध हवा तो मिलने से रही।
नाश्ते की टेबल पर चर्चा के दौरान कौसानी जाने का प्रोग्राम तय हो गया।
बड़े बेटे ने अपने पिता कल्याण सिंह रावत से पूछा। पिताजी नैनीताल में होटल बुक करवा दू क्या।
अरे! नही बेटे अपने पुरखों की पुशतैनी हवेली है वही चल कर रुकेंगे और परिवार के लोगो से मिलना भी हो जाएगा।
पूरा सफर बचपन और किशोरावस्था के सुंदर सपनो में और कौसानी की खूबसूरत वादियों की यादों में निकल गया।
काठगोदाम से कार बुक करके कौसानी पहुँचे, कस्बे में घुसते ही कल्याण सिंह रावत अचंभित रह गए।
जगह जगह होटल, लॉज, रेस्टोरेंट, कैफे खुल गए थे, वो पुरानी नैसर्गिक खूबसूरती खो सी गई थी।
हवेली के सामने गाड़ी रुकी वहा भी हवेली के ज्यादातर हिस्से को लॉज, रेस्टोरेंट आदि में बदला जा चुका था।
बैठक में चाचा,ताऊ संग बैठे चाय पी ही रहे थे कि छोटे चाचा बोले परिवार के साथ घूमने निकले हो?
इतने सालों बाद याद आयी अपने गांव की।
बड़े ताऊ ने चाय का कप रखते हुए कहा,कोई याद वाद नही आई, न तो गांव की न हमारी।
देखते नही पूरे परिवार को साथ लेकर आया है
हिस्सा मांगने आया है ये।
बिना कुछ बोले कल्याण सिंह जी ने हाथ जोड़े और बाहर निकल पड़े।
नैनीताल की तरफ जाते हुए पिछली सीट पर गुमसुम से बैठे रावत साहब को अब अपना वो प्रदूषित शहर अपना सा लगने लगा था।
जिसे उन्होंने कभी अपना नही माना था।
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