Skip to main content

गजल

कल क्या हो किसी को कोई खबर नहीं
कल की फ़िक्र से अलहदा कोई बशर नही। 

भटकता फिरता हूँ सुकून की तलाश में
लगता है मुझको जैसे मेरा कोई घर नही।

चेहरे को ढक को रखता है मुस्कराहटों से
ऐसा नहीं है कि उसे कोई फ़िकर नही। 

रात की स्याह परछाईया बढ़तीं ही जा रही
लगता है इस रात की कोई सहर नही। 

पूरे गुलशन में मुझे तितलियां नही दिखी
लगता है इस गुलशन में गुलों का शजर नही। 

मेरी तमाम खुशियां रहतीं है उस ओर
उस ओर जाने को पर कोई डगर नही। 

पा लिया इतना जिसका हकदार भी न था
अब मौत भी आ जाये तो कोई डर नही।


Comments

Popular posts from this blog

युद्ध का बदलता स्वरूप।

लेबनान में हिजबुल्लाह आतंकियों पर हुए पेजर अटैक ने मध्यपूर्व एशिया में चल रहे युद्ध का परिदृश्य ही बदल कर रख दिया है। हिजबुल्लाह के चीफ ने अपने आतंकियों को मोबाईल न उपयोग करने की सलाह दी थी, क्योकि उसे लगता था कि मोबाईल को ट्रेस किया जा सकता है।  इसलिए वो लोग पेज़र का इस्तेमाल करते थे, अब वो ही पेज़र बम की तरफ फट कर उनका ही विनाशक बन गया।  दुनिया मे जितने भी युद्ध हुए है पलड़ा उसी का भारी पड़ता है जो परंपरागत युद्ध शैली से हटकर युद्ध करता है।  उदाहरण के रूप में महाभारत के युद्ध को ही देख ले,महाभारत युद्ध में 14वे दिन कौरव घटोत्कच की युद्ध शैली देखकर हतप्रद रह गए। अपनी सेना के पैर उखड़ते देख दुर्योधन ने कर्ण से देवेंद्र द्वारा दी हुई अचूक शक्ति घटोत्कच पर चलवा दी और कुरुक्षेत्र का युद्ध अपने अंत की ओर बढ़ चला। इसी प्रकार लंबे अरसे तक चले द्वितीय विश्वयुद्ध में अमेरिका द्वारा हिरोशिमा और नागासाकी पर हुए परमाणु हमले ने दूसरे सभी देशों को घुटनों पर ला दिया और एक नई वैश्विक व्यवस्था का निर्माण हुआ।  अभी वर्तमान में चल रहे रूस यूक्रेन युद्ध को ही देख लीजिए,रूस के शक्तिशाली टैंक ...

दो शेर

गुमसुम रहो उदास रहो लोग खुश हारे रहो परास्त रहो लोग खुश। वो तुम्हें अपने जैसा देखना चाहते उनकी तरह विषाक्त रहो लोग खुश। 

लघुकथा

बैंक की किश्ते न चुका पाने के कारण, इतना बड़ा मकान बेचकर छोटा घर तो ले लिया। पर अब इतना सामान इस घर मे आएगा कैसे।  जो जरूरत का सामान हो वो रखो फालतू का सब कबाड़ में बेच दो।  और इस कार्टून का क्या करना है।  अरे! इसमें किताबे है और इससे कीमती चीज कोई नही होती।