अभी अभी दिग्गज कांग्रेसी चिंतक सैम पित्रोदा का एक बयान बहुत सुर्खियों में रहा।
जिसमे उन्होंने भारत मे रहने वाले विभिन्न प्रदेशों के नागरिकों को शक्ल सूरत और रंग के आधार पर विभाजित करने का प्रयास किया।
रंगभेद,नस्लभेद,वर्णभेद या फिर धार्मिक भेदभाव कोई आज की बात नही है,ये विश्व की सबसे पुरानी समस्याओं में से एक है।
इन्हीं समस्याओं से लड़ने के लिए कभी महात्मा गांधी संघर्ष करते है तो कभी मार्टिन लूथर किंग, या फिर दक्षिण अफ्रीका में नेल्सन मंडेला अपनी उम्र का एक बड़ा हिस्सा जेल में बिता देते है।
इसी भेदभाव के कारण यहूदी हजार साल तक बेवतन रहे।
कश्मीरी पंडित हो या सिंध से विस्थापित हिंदू सिंधी,बलोच हो या फिर काले रंग के अमरीकन इन सभी ने इस रंगभेद नस्लभेद के बेहद विद्रूप रूप को झेला है।
अभी कुछ समय पहले एक गोरे अमरीकी पुलिस वाले ने छोटी सी गलती पर एक काले अमरीकी नागरिक को सिर में गोली मार दी थी।
तब पूरी दुनिया ने विरोध किया था और "ब्लैक लाइफ मैटर्स" नामक मुहिम चलाई थी।
दुनिया के बड़े से बड़े वैश्विक संगठन अंतरराष्ट्रीय मंचो पर बड़ी बड़ी बाते तो करते है पर कोई ठोस कदम नही उठा पाते,जिसके कारण आज भी इस विकसित होती दुनिया मे करोड़ो लोग अल्पविकसित जीवन जीने को मजबूर है।
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